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12 May 2024 · 1 min read

रोना ना तुम।

रोना ना तुम जो हम कभी कफ़न में अपनें घर को आए।
समझ लेना वो सब कुछ जो भी हम तुझसे ना कह पाए।।

हमें माफ कर देना जो तुझसे किया वादा ना निभा पाए।
बात थी सदा साथ देने की पर हम मौत से ना लड़ पाए।।

सबका मैं लख्ते जिगर था पर मरने पे मिट्टी बन गया हूँ।
तुम भी ना लाश कह देना कि हम मरके फिर मर जाए।।

आऊंगा हवा में खुशबू बनकर रहूँगा तेरे ही आस पास।
पहचान लेना मेरी महक को जब हम यूँ बह कर आये।।

मांगी थी चन्द दिनों की और उधार ज़िन्दगी यूँ खुदा से।
पर मालिकुल मौत तो मुकर्रर है यह तय वक्त पर आए।।

कर लो आखीरी नज़ारा कि हम तो दुनिया से चलते है।
वो देखो मेरे ही,मेरी ख़ातिर तुर्बत का घर बनाकर आए।।

ताज मोहम्मद
लखनऊ

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