महाराजा सूरजमल जाट
अस्सी लड़े थे युद्ध भी जिसने,
शौर्य भी सूरज जैसा था ।
जाटो का अफलातून वही था,
भरतपुर का लाल वो ऐसा था ।।
दिल्ली विजय करी थी उसने,
अंग्रेज, मुगल भी कापे थे ।
ऐसा था वो जाट बहादुर,
नाम से ही दुश्मन भागे थे ।।
सूरजमल सा पूत जना,
प्रणाम देवकी माता को ।
पिता बदन सिंह जिसके थे,
आभार भाग्य विधाता का ।।
धर्म के रक्षक सूरजमल थे,
पर दया दिखाते सब पर थे ।
दुश्मन को तो एक दहाड मे,
ललकार, मार गिराते थे ।।
मित्र धर्म निभाने खातिर,
लड़ा मराठा, राजपूतों से ।
नारी का मान बचाने खातिर,
भीड़ जाता वो काल से ।।
सुजान चरित्र हैं जीवनी इनकी,
लिखि राज कविवर सूदन ने ।
कुसुम सरोवर समाधि इनकी,
मिले बृज भूमि गोवर्धन मे ।।
ललकार भारद्वाज