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1 May 2024 · 4 min read

राम नवमी मना रहे हैं

आज रामनवमी है
तो आइए!हम भी राम जन्मोत्सव मनाते हैं,
खूब नाचते गाते इतराते हैं
साथ ही इसे भी औपचारिक बनाते हैं।
प्रभु श्रीराम जी को खूब भरमाते हैं
रामनवमी की औपचारिकता खूबसूरती से निभाते हैं।
कहने को राम हमारे आराध्य, हमारे पूज्य हैं,
मर्यादा पुरुषोत्तम, पालनहार, खेवनहार है
मर्यादा की प्रतिमूर्ति, भगवान विष्णु के अवतार हैं।
तो हम ही कहां कम हैं,
राम जी से हम भी तो बड़े प्रेरित हैं
बस अंतर केवल इतना है कि
उनकी प्रेरणा का थोड़ा उल्ट प्रयोग करते हैं।
राम मातु पितु आज्ञाकारी थे
हम ये ढोंग बिल्कुल नहीं करते हैं,
राम शांत और सौम्यता की प्रतिमूर्ति थे
हम तो राक्षस प्रजाति के समान हैं।
राम महिलाओं का सम्मान करते थे
हम ये भीक्षऔपचारिकता नहीं निभा पाते हैं,
राम भाइयों से बड़ा प्रेम करते थे
हम तो भाइयों का हक छीनने में नहीं सकुचाते हैं।
षड्यंत्र करने में भी पीछे नहीं रहते हैं।
राम जी के अपने आदर्श थे
जो उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम बनाते हैं,
हमारे भी तो अपने आदर्श है
साम, दाम, दंड, भेद जैसे भी हो
सिर्फ अपना अपना स्वार्थ देखते हैं,
ये हमारे गुण ही तो हमें खासमखास बनाते हैं।
राम जी की दुहाई हम भी दे रहे हैं
राम जी की पूजा आराधना की औपचारिकता
हम पूरी ईमानदारी से निभा रहे हैं।
अब राम जी यह बात समझें ,न समझें
हम उन्हें दोषी भी तो नहीं, मान रहे हैं।
उनका युग कुछ और था,आज का युग कुछ और है
यह बात राम जी को जरूर समझाते हैं।
राम जी पितृ आज्ञा से वन गये
ये उनकी अपनी समस्या थी,
पर दशरथ जी के प्राण त्यागने का
भला क्या मतलब था?
क्या ये कोई दूर की कौड़ी थी
जिसकी समझ शायद राम जी की समझ से भी बाहर थी।
आज के जमाने में रामजी होते तो क्या करते?
भरत के ननिहाल में होने का लाभ उठाते
पहले राजसिंहासन हथियाते,
और अपने आसपास अपने विश्वासपात्रों का
घेरा मजबूत कर खुफिया तंत्र का जाल फैलाते
फिर कैकेई, भरत के पीछे जांच एजेंसियां लगा देते,
तन्हाई में कैद कराने का पुख्ता इंतजाम करते
तब राम वियोग में दशरथ के प्राण भी न जाते।
अब कहेंगे क्यों और कैसे?
चलो ये भी हम ही आप सबको समझाते हैं
राम जी मुझे क्षमा तो कर ही देंगे
क्योंकि हम साफ साफ सच ही तो कहते हैं,
सत्यवादी हरिश्चंद्र भी इस कलयुग में
हमें ही अपना गुरु मानते हैं।
राम जी के साथ साथ आपको भी हम बताते हैं
गुरुकुल और आज की शिक्षा का मतलब समझाते हैं
कलयुगी शिक्षा का ज्ञान कराते हैं।
हम तो बिना आज्ञा के ही अपने स्वार्थ वश
अपने मां बाप को वृद्धाश्रम में ढकेल रहे हैं,
जी भरकर अपमान उपेक्षा भी कर रहे हैं हैं।
हमें अफसोस भी बिल्कुल नहीं होता
क्योंकि हम हम रामनवमी भी मनाते हैं
राम जी को याद करते,
उनकी पूजा आराधना भी करते हैं।
मगर हमारी विवशता या बेशर्मी तो देखिए
जिसे राम जी देखने तक नहीं आते,
हमारे पड़ोसी भी हमसे कोसों दूर भागते हैं,
हमें इंसानी जानवर बताते हैं।
हम जब भी कष्ट में होते हैं
सबसे ज्यादा वे बहुत प्रसन्न होते हैं।
अब राम जी को कम से कम
इतना तो मेरा एहसान मानना चाहिए,
मगर वो भी अब बिल्कुल नहीं मानते हैं,
हम साल भर अच्छा बुरा जो भी करें
रामनवमी तो राम जी के नाम पर ही मनाते हैं।
मन से न सही, झूठ मूठ ही सही
जय श्री राम के नारे भी हम लगाते हैं
पुरखों की परंपरा को अब तक जिंदा किए हुए हैं,
पीढ़ी दर पीढ़ी राम जी को आज तक ढोते आ रहे हैं,
राम के नाम को हम ही तो जिंदा रख रहे हैं,
मगर आज कलयुग में राम जी
ये एहसान फिर भी नहीं मान रहे हैं?
बावजूद इसके हमें बड़ा गर्व है
कि हम अपने पुरखों को आज भी बड़ा मान दे रहे हैं,
अपमान, उपेक्षा, तिरस्कार उनका चाहे जितना करें
उनकी ही खींची लकीर पर कलयुग में भी चल रहे हैं।
और आज सदियों बाद भी
साल दर साल हम रामनवमी मना रहे हैं।
अब ये आप ही सोचिए कि राम जी अच्छे हैं
या हम उनसे भी अच्छे हैं,
जो पुरखों की बनाई परंपरा आज भी ढो रहे हैं
और राम जी वहां महल में मंद मंद मुस्कुरा रहे हैं।
पुरखों को भूल अपना ही जय जयकार करा रहे हैं
और हम रामनवमी मनाकर क्या कम अहसान कर रहे हैं?
आखिर उनका ही तो काम आसान कर रहे हैं
जय श्री राम का उद्घोष भी रोज रोज,
साल दर साल कर हम ही कर रहे हैं
और रामनवमी भी मना रहे हैं,
अब राम जी की माया राम जी ही जानें
पर हम तो ईमानदारी से अपना काम कर रहे हैं
और हमारी आड़ में राम जी अपनी जय जयकार करा
बहुत होशियार बन रहे हैं,
ये कलयुग है यार
रामजी ये क्यों नहीं समझ रहे हैं?
या नासमझ होने का खेल कर रहे हैं।

सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उत्तर प्रदेश

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