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28 Nov 2023 · 1 min read

मन वैरागी हो गया

ग़म का सागर नहीं सकता
उस शख्स का कुछ बिगाड़
जो अधिकतम खोने के लिए
हर समय मन से रहता तैयार
मन वैरागी हो गया जिसका
उसको दुनिया की नहीं फ़िक्र
जिसको जो जी में आए कहे
करता वो नहीं किसी की फ़िक्र
दुख और सुख उसके लिए सदा
एक स्वाभाविक सा घटनाक्रम
वो भौतिक संसाधन पाने को भी
नहीं करता कोई भी षटकर्म
हे प्रभु मुझको भी दीजिए सदा
वैराग्य का ही अद्भुत वरदान
भौतिकता से दूर रहकर कर
सकूं मैं सचमुच आत्मोत्थान

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