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11 Dec 2024 · 2 min read

विडंबना

देश के सीने से निकली है, एक आवाज बुलंदी से।
दिल्ली में बैठे जनसेवक, अब तो तुम चुप्पी तोड़ो।
बलिदानों की शय्या पर सोने वालो, पाक से अब न नाता जोड़ो।
माना की घाटी बदली है, शासन तेरा आने से ।
पर हर माँ को दुःख है होता, बेटों का रक्त बह जाने से।
56-56 सब कहते हैं, 6 इंच जमीन न छीनी है।
बेटो का है रक्त बह रहा, हर माँ की आंखे भीनी हैं।
बहुत हो गई खून की होली, अबकी वर्ष तो द्वीप जला लो।
घाटी के गद्दारो के सीने पर, भारत का तिरंगा फहरा लो।
जिस घर पर तिरंगा न फहरे। उसका शीष कलम करवा दो।
हुंकार भरो बस एक बार, और धारा 370, 35(ए) हटवा दो।
साथ खड़ा है देश तुम्हारे, फिर तुम क्यों भयभीत से हो।
सेना है सक्षम सब करने को, एक बार तुम छूट तो दे दो।
सर्जिकल स्ट्राइक की है तुमने, और मरहम है तुमने लगाया।
वो मरहम बेकार हो गया, घावों को वो भर न पाया।
मरहम से अब कुछ न होगा, अब अपरेशन करना होगा।
घाटी-घाटी बहुत हो गया, करांची पर कब्जा करना होगा।
उरी में 19 सहीद हुए, कुछ सहीद हो गए कल परसों।
ठहरो तुम ऐ पाक देश, अगर रहना है तुमको बरसों ।
गगन में विचरण करते परिंदे, भी न तुमको बक्शेंगे।
धीर धरे हैं अतुल तीर, बस एक आदेश की देरी है।
पल भर में तुम मिट जाओगे, जो हमने नजर तरेरी है।
त्रिशुल, नाग और पृथ्वी, रमन करने को आतुर हैं।
अर्जुन का कौशल है तुमने देखा, अग्नि प्रहार अभी बाकी है।
तुम जैसों के सर्वनाश को, तेजस दृष्टि ही काफी है।
तेजस दृष्टि ही काफी है..…

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