शंख ध्वनि
आत्म विजयिनी शंख ध्वनि फिर,
गुंजित हो उठे हर मानव में।
शक्ति सम्राट तू अखिल सृष्टि का,
अतुल देवत्व शक्ति है मानव में।।
विभा पुत्र तुम जग जननी के,
अतुल विभव के हो वरदाता।
जीवन तेरा सत्य विनय हो,
सकल सृष्टि के प्राण विधाता।।
लोभ दंभ दुर्भाव द्वेष सब,
इस जीवन से दूर हटा दो।
भक्ति प्रेम की सकल निधि से,
इस धरती को स्वर्ग बना दो।।