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2 Feb 2024 · 1 min read

*सुकुं का झरना*... ( 19 of 25 )

सुकुं का झरना

तब से गुमसुम मैं रहती हूँ ,
जब से सीखा चहरे पढ़ना ..

सूख गया सारा ही समंदर ,
जब सीखा पानी पर चलना ..

जो भी था सच्चाई से बोला ,
आता कहाँ है किस्से गढना …

कल जैसी बातें लगती है ,
आपकी ऊँगली थामे चलना ,..

जाना था कुछ रुक कर जाते ,
हमको आ जाता तन्हा चलना …

पूछो माली से बहुत दुखद है ,
एक बगिया का जंगल बनना …

हम ही कदम मिला ना पाए,
नामुमकिन था वक्त ठहरना …

ऊँचाई की चाह नहीं है ,
धरती पर हो सुकुं का झरना…

क्षमा उर्मिला

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