Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
18 Jun 2025 · 1 min read

चूड़ियाँ

हरी गुलाबी लाल नीली खिली हुई हैं चूड़ियाँ
गांव के मेले में फिर से सजी हुई हैं चूड़ियाँ।

नोंक झोंक मनुहार उलाहने रूठा रूठी से बहाने
हाय ! मेरी यादों में कितना घुली हुई हैं चूड़ियां।

एक दिन अपनी बहू को प्यार से पहनाऊँगी
मेरी माँ ने कुछ सम्हाल के रखी हुई है चूड़ियां।

बिंदिया कंगन पायल झुमके काजल से सवाल है
आख़िर उसने क्यों नही पहनी हुई है चूड़ियाँ।

क्या कोई रावण उठा कर ले गया फिर छल से
हे राम ! ये किसकी रास्ते में गिरी हुई हैं चूड़ियां।

हादसा नही किसी की वहशियत का शिकार है
देखो रक्तरंजित हाथ में सब टूटी हुई हैं चूड़ियां।

लड़ नही सकता अग़र तू भीतर के हैवान से
चल दोनों हाथ में पहन ले, उतरी हुई हैं चूड़ियां।

कब समझ पाएगी दुनिया कैद आंखों की जुबां
भीतर भीतर कब से घुटी सहमी हुई हैं चूड़ियां।

-देवेंद्र प्रताप वर्मा ‘विनीत’

Loading...