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12 Mar 2025 · 1 min read

आशा का प्रसाद

///आशा का प्रसाद///

जीवन के इस महारण्य में,
भटक रहा है बनवारी।
ढूंढ रहा है कि आशा से,
शुचि मंजुल मधुता सारी।।

तम सघन है तेज पवन है,
नारी रूप भटक रही वह बेचारी।
मानवता हित जग अरण्य में,
जीवन महौषधि सुधा हितकारी।।

प्रेम तपन में शीत अनिल में,
जीवन है इस श्रद्धा का फूल।
बहती उदधि अपार जहां से,
लेकर उस नदिया का कूल।।

तेरी श्रद्धा मेरी आशा,
मेरी श्रद्धा तेरा जीवन।
डूबी होकर भी सपनों में,
जाग रही है तू चिरंतन।।

सुधि विद्रूम लता अलबेली,
तेरी आशा का नवल गान।
फलित आशा जीवन लेकर,
ये पुष्पित आज तेरा वितान।।

उस विवर्त श्रृंखला की कड़ियां,
क्या मैं जोड़ सकूंगा आज।
नित नूतन आयामों से प्रेरित,
तेरी सुमधुर आशा का साज।।

पल्लवित वसंत के पार भी,
जगत में मांगा क्यों सुहाग।
मिल ना सकेगा क्या अब,
पुष्प दलों का मधुर पराग।।

प्रणय के निस्सीम गगन को,
लेकर कैसे लौट सकेंगे हाय।
प्रणय प्राण हैं विश्व धरा के,
चिर पाथेय मधु स्वान्त उपाय।।

नित्य देकर बलिदान प्राण का,
फलित जग में आशा प्रसाद।
हे शुचि अतुल स्फुरण विधा,
त्याग कर दो सकल अवसाद।।

स्वरचित मौलिक रचना
प्रो. रवींद्र सोनवाने ‘रजकण’
बालाघाट(मध्य प्रदेश)

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