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28 May 2024 · 1 min read

“उमंग तरंग हो मन का मेरे, हर सुख का आभास हो”

उमंग तरंग हो मन का मेरे, हर सुख का आभास हो,
मीठी सी धूप लाने वाला, मेरे जीवन का प्रभात हो!!

चंचलता तेरी लहर नदी सी चलती जैसे सांस हो,
तुम सुगंध हो कुंज कली की फैलाती सुवास हो!!

निश्छल तेरा बचपन, मेरे जीवन का मधुमास हो,
हृदय को शीतलता देने वाली सुखद अहसास हो!!

शब्द तुम्हारे मीठे तीखे गृहस्थ ग्रंथ का सार हो,
मौन तुम्हारी ऐसे जैसे दिन में भी अंधियार हो!!

तुम न हो तो घर बन जाता है देह कोई निःश्वास हो,
मन करे सुनता ही जाऊं बातें तेरी बढ़ती प्यास हो!!

कभी लता सी गले लिपटना कांधों पे कभी झूलना,
धाकर निकट में आना तेरा और कपोलों को चूमना!!

बस अपनी मीठी सी बोली से कानों में रस घोलना,
है अनमोल वे क्षण मेरे चुका सकूँ कोई तो मोल ना!!

संग लड़ना कभी अपनी भगिनी, संग उसी के खेलना,
करना उसकी कभी शिकायत, उसके शिकवे झेलना!!

बातें करना इधर उधर की और प्रश्न पिटारा यूं खोलना,
अपनी छोटी इच्छाएं लेकर माँ के आगे पीछे डोलना!!

©️ डॉ. शशांक शर्मा “रईस”
बिलासपुर, छत्तीसगढ़

Language: Hindi
142 Views
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