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8 Dec 2024 · 1 min read

मज़हब की आइसक्रीम

लोग खिलाना चाहें मुझको, मज़हब की आइसक्रीम
मेरा गला खराब है, चाहूँ मैं हकीम

जाली टोपी सर पे सजाके
चेहरे पे दाढ़ी को बढ़ाके
नफ़रत की तकरीरें सुनाके
लोगों को आपस में लड़ाके

भैंस सरीखे जन पगुराते, धर्म की बजती बीन
मेरा गला खराब है, चाहूँ मैं हकीम

तिलक–त्रिपुंड हैं जो ये लगाए
मन की वासना छोड़ न पाए
धन–लोलुपता इनके साए
सुरा–सुंदरी इनको भाए

देते हैं ये दीन का प्रवचन, पथ है इनका हीन
मेरा गला खराब है, चाहूँ मैं हकीम

राजनीति इनको है भाती
सत्ता इनको सदा सुहाती
राइफल और बंदूक रमाकर
हाथों में माला को नचाकर

गण–गण को है ये बतलाते, बातें बड़ी महीन
मेरा गला खराब है, चाहूँ मैं हकीम

––कुँवर सर्वेंद्र विक्रम सिंह✍🏻
★स्वरचित रचना
★©️®️सर्वाधिकार सुरक्षित

2 Likes · 198 Views
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