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23 Feb 2025 · 1 min read

रात सजने लगी

शाम ढलने लगी
रात सजने लगी
दूर कानन कही
वेणु बजने लगी
तीव्र शीतल मधुर
हवा बहने लगी
पेड़ की ओट से
प्रभा तकने लगी
कुसुम रात रानी
अब महकने लगी
वर्षाप्रिय मंडली
शोर करने लगी
चाँद को देखकर
शमा जलने लगी
जमीं थी शिखर पे
बर्फ गलने लगी
चाँदनी चाँद से
गले मिलने लगी
फिजा में अजब सी
महक घुलने लगी
पैर में पैंजनी
मधुर बजने लगी
कंत खातिर प्रिये
सज सँवरने लगी
देख सुन्दर छटा
नारि नचने लगी
प्रेम की हर जगह
बात चलने लगी
सखी प्रिय मिलन को
अति मचलने लगी
देख मुख सजन का
नारि हँसने लगी
लग सजन के गले
बाँह कसने लगी
विकल थी जो अभी
साँस थमने लगी

स्वरचित रचना-राम जी तिवारी”राम”
उन्नाव (उत्तर प्रदेश)

Language: Hindi
29 Views
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