प्रिय का संदेश
///प्रिय का संदेश///
प्रफुल्लित जगती खिला वसंत,
लेकर अमृतमय मधुता लाते।
खग मृग मधुकर सबका गुंजन,
प्रियकर का संदेश सुना जाते।।
प्रिय विरह के अंतर की पीड़ा,
देकर संदेश जगा जाता।
प्रिय मिलित यामिनी का अंतर ,
सहज सुधा सरसा जाता।।
विकल सरित स्पंदित लहरी,
सहज कला से बहती है।
सकल जगत में प्रतिपल जगती,
विहंस विहंस ये कहती है।।
मधुर मधुर यामों से पूरित,
यह सारा अग जग संसार।
दे जाता है प्रतिपल अपना,
मणि कांचन सुरभि पुष्पहार।।
अर्पित यह फूलों का गुंफित,
नव मृदु तल हास्य तरल।
गाते प्रियकर संदेश अलिगण,
ले प्रियतम से सहज विमल।।
निशा रानी चादर फेंक चली,
तब तिमिर छंटेगा चहुंओर।
पिक कुहुक कोयल कुजेगी,
प्राण ले आती विलसित भोर।।
रवि मेरे प्रिय का ही तो,
संदेश सुनाने हैं आते।
गाते हैं ये खग दल सारे,
प्रिय संदेश सुना जाते।।
सौरभमय मधु मलय पवन,
प्रफुल्ल धरा सारा उपवन।
भैरव राग नव सुलभ सुठि,
गा उठता है सारा मधुबन।।
कूजती झंकार सहज उच्चार,
पुनीत हृदय कह रहा संसार।
झर झर झरते निर्झर अनेक,
प्रवाहमान रह ये पाते विस्तार।।
प्रकृति का यह चक्र सारा,
कहता सदा बस एक गाथा।
कण-कण प्रिय संदेश भरा,
जोड़ लो तुम भाग्य विधाता।।
गति गति में संदेश सहज ही,
जगत यह सारा मनोहर।
प्रकृति का यह सृजित वेश,
करता रंजित विधु सुधाधर।।
नीरव कथा है प्राण कहते,
कण-कण वही गान गाते।
खग मृग मधुकर सभी आते,
प्रियकर का संदेश सुना जाते ।।
स्वरचित मौलिक रचना
प्रो. रवींद्र सोनवाने ‘रजकण’
बालाघाट (मध्य प्रदेश)