*सत्ता पलटी हो गए, पैदल सत्तासीन (कुंडलिया)*

सत्ता पलटी हो गए, पैदल सत्तासीन (कुंडलिया)
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सत्ता पलटी हो गए, पैदल सत्तासीन
अब इनसे ज्यादा नहीं, जग में कोई दीन
जग में कोई दीन, रात-दिन आहें भरते
बीते दिवस वसंत, याद उस ही की करते
कहते रवि कविराय, पेड़ से टूटा पत्ता
अब पतझड़ का दौर, गई हाथों से सत्ता
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451