बाबा राजा राव कौन था?

बालोद जिलान्तर्गत गुरुर प्रखण्ड में स्थित ग्राम कर्रेझर के राजा राव पठार में वीर मेला का आयोजन प्रतिवर्ष 8 से 10 दिसम्बर को होता है। यह त्रिदिवसीय मेला बालोद, धमतरी और कांकेर जिले के आदिवासियों का एक संयुक्त प्रयास है। लगभग 3 लाख लोग प्रतिवर्ष इस मेले में पहुँचते हैं। इस मेले में राज्यपाल और मुख्यमंत्री भी शिरकत करते हैं। सन् 1857 के वीर शहीद नारायण सिंह की याद में 10 दिसम्बर को मेले का समापन होता है। इस दौरान भव्य शोभा यात्रा भी निकाली जाती है।
वीर मेला आदिवासी समाज की वेशभूषा और संस्कृति को जानने और समझने का सबसे बड़ा केन्द्र है। यहाँ बाबा राजा राव के साथ लिंगो बाबा और चरवाहा देव भी स्थापित है, जिसके कारण इसे “देव मेला” भी कहते हैं। इस मेले में प्रदेश भर के ध्रुवा, गोड़, बैगा, कमार, कंवर इत्यादि समाज के आदिवासियों के अलावा अन्य लोग भी बड़ी संख्या में शामिल होते हैं। इस मेले की चर्चा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी होने लगी है।
बाबा राजा राव की ऐतिहासिकता के सम्बन्ध में जनश्रुति है कि वह कर्रेझर क्षेत्र के आदिवासियों का प्रधान था। वह सत्य का उपासक एवं प्रकृति पूजक था। वह अपनी सादगी, स्वच्छता और न्यायप्रियता के लिए जाना जाता था। कोई भी समस्या आने पर लोग समाधान की आस लिए उनके पास पहुँचते थे। और, उन्हें बाबा राजा राव का सहयोग और आशीष प्राप्त होता था।
बाबा राजा राव पर उस क्षेत्र के लोगों की अगाध आस्था है। ग्रामीणों का मानना है कि बाबा राजा राव के साथ शेर भी निवास करता है। जब भी उस क्षेत्र में कहीं कोई संकट आने वाला होता है तो इसकी सूचना शेर की दहाड़ से मिलती है। फलस्वरूप लोग चौकस हो जाते हैं।
बाबा राजा राव की प्रतिमा की स्थापना कब हुई, इसे कोई नहीं जानता। पहले यह मेला कर्रेझर में होता था। लेकिन लोग जब बाबा राजा राव के महत्व को जानने लगे, तब से धमतरी-जगदलपुर राष्ट्रीय राजमार्ग से लगे राजा राव पठार में विशाल रूप में मेला आयोजित होने लगा। ऐसी मान्यता है कि इस मेले में लोगों के साथ क्षेत्र के देवी-देवता भी आते हैं। बाबा राजा राव के मुख्य स्थल पर महिलाओं को प्रवेश की अनुमति नहीं है।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
इण्टरनेशनल स्टार अवार्ड प्राप्त
हरफनमौला साहित्य लेखक।