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27 Jan 2025 · 1 min read

चाहत के धागे

हमारी चाहतें कुछ भी हों
पर हमारी चाहतों के धागे
न ही टूटने चाहिए और
न ही उसमें गाँठ पड़नी चाहिए।
क्योंकि चाहतों के धागे
बहुत कमजोर होते हैं,
विश्वास के भरोसे चलते हैं,
जिसे सँजोए रखना हमारी जिम्मेदारी है।
हम अपनी जिम्मेदारियों को
समझते रहेंगे जब तक,
तब तक चाहत के ये धागे
हमें प्रेम प्यार से पिरोते रहेंगे,
वरना हमसे नाता तोड़ लेंगे।
तब न चाहतों का सूत्र बचेगा
न ही चाहत के धागों का,
अस्तित्व ही रह पायेगा,
और चाहत का धागों का
खेल भी हमेशा के लिए
खत्म होकर खत्म हो जायेगा।

सुधीर श्रीवास्तव

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