गुरु महिमा

गुरु महिमा
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जैसे एक किसान खेत में,
अपनी फसल उगाया करता।
जैसे चित्रकार चित्रों में,
रंग-बिरंगे रंग है भरता।।
जैसे एक कुम्हार चाक से,
अपने पात्र बनाया करता।
जैसे मूर्तिकार मिट्टी से,
नित नए रोज खिलौने गढ़ता ।।
जैसे कलमकार कृतियों में,
सुंदर वर्ण संजोया करता ।
जैसे एक सुनार स्वर्ण से,
हीरे जड़ित अलंकरण मढ़ता ।।
जैसे बागवान उपवन में,
मंजुल विटप उदित करता है।
जैसे सुमन हार मंदिर में,
शिव प्रतिमा के सिर चढ़ता है।।
वैसे ही नन्हे-मुन्नों का,
जीवन रोज संवारा करते।
कारीगर बन निज कौशल से,
नए इंसान बनाया करते।।
लेखक बन कोरे पन्नों पर,
नित नए लेख सजाते हैं।
शिक्षक बन हम शिक्षा की,
अखंड ज्योति जलाते हैं।।
– राजकुमार पाल (राज)