जब तक मचा हो अन्दर कशमकश
जब तक मचा हो अन्दर कशमकश
कोई तो कुछ कह भी नहीं सकता
जिंदगी से दो-चार हाथ किए बिना
ऐसे कोई कहीं जा भी नहीं सकता
पारस नाथ झा
जब तक मचा हो अन्दर कशमकश
कोई तो कुछ कह भी नहीं सकता
जिंदगी से दो-चार हाथ किए बिना
ऐसे कोई कहीं जा भी नहीं सकता
पारस नाथ झा