“ठोको जी भर ताली..!”-हास्य कविता
कभी साथ में बीवी होती,
कभी मगर है साली।
फ़र्क नहीं कुछ पड़ता मुझको,
गोरी हो या काली।।
काम नहीं कुछ अपने जिम्मे,
कटती बैठे-ठाली।
“आशा” की क़िस्मत तो देखो,
मिलती जी भर गाली।।
कहाँ सुनाऊँ जाकर मित्रों,
मनती रोज़ दिवाली।
ताश, कभी, लूडो हाथों मेँ,
समझें लोग मवाली।।
रेगिस्तान सरीखा जीवन,
नयनों धार बहा ली l
यदि साली-सलहज आ जाये,
हो जाए हरियाली ll
पीने का है शौक़, भले फिर,
प्याला हो या प्याली।
भाई यदि कविता हो, तब तो,
ठोको जी भर ताली..!
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