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11 Jul 2024 · 1 min read

जज़्बात पिघलते रहे

सारी रात मेरे , जज्बात पिघलते रहे।
बिछड़ कर तझसे , हम हाथ मलते रहे।

इश्क़ के रोग ने हमें, कहीं का न छोड़ा
रोज़ पास से अजनबी बन के चलते रहे।

बेवफाई तेरी रखी हैं ,मैंने संभाल कर
ज़हर तेरा दिया ही ,हम निगलते‌ रहे।

हसीं ख्वाबों को हमने खुद आग लगाई
अपना हर अरमां पैरों तले कुचलते रहे।

फूल मोहब्बत के जो कभी तूने थे लगायें
अपने हाथों में ले लेकर हम मसलते रहे।

सुरिंदर कौर

Language: Hindi
135 Views
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