कभी और कभी
कभी लगे गंभीर बहुत हम,
और कभी लगे हम विनोद स्वभावी।
कभी लगे हम शांत सरोवर,
और कभी लगे हम उग्र स्वभावी।।
कभी सभी के दिलों मे बस्ते,
और कभी चुभे आँखों मे हम।
कभी हंसी का कारण बनते,
और कभी अश्रु की वजह भी हम।।
कभी ज्ञान के पुंज लगे हम,
और कभी लगे अज्ञानी हम ही।
कभी सहनशील बहुत लगे हम,
और कभी क्रोध के स्वामी हम ही।।
कभी आशा की किरण लगे हम,
और कभी निराशा संग खड़े हम।
कभी दर्द का कारण बनते,
और कभी दर्द का निदान करे हम।।
कभी राज को भरते अंदर,
और कभी हमराज सब अपने अंदर।
कभी राष्ट्र की भक्ति अंदर,
और कभी धर्म की शक्ति अंदर।।
कभी धरा पर सबसे अच्छे,
और कभी धरा पर बुरा ना हमसा।
कभी हृदय के बहुत बुरे हम,
और कभी बड़े हृदय सा कोई ना हमसा।।
कभी प्रेम के बने पुजारी,
और कभी प्रेम से नफरत भारी।
कभी ललित की लगती दुनिया,
और कभी ललितम् दुनिया सारी।।
कभी चुनौती बहुत हो भारी,
और कभी चुटकीयों मे हल हो सारी।
कभी लगे सब अपने दुश्मन,
और कभी दुश्मनों सग मारा मारी।।