माटी की महक

लुभाए है मन को माटी की महक।
नशा सा छाए ,मन जाए बहक।
तपती धरा पर ,दो बूंदें सावन की
शीतल करे मन , मनभावन सी।
फूली सरसों ,महक उठी अमराई
कोयल ने भी ऐसी कूक सुनाई।
चलते चलो ये सफ़र है बहुत सुहाना
भीनी भीनी खुशबू के संग याराना।
मिट्टी के खिलौने हैं , मिट्टी है हो जाना
इतनी है कहानी ,काहे फिर घबराना
सुरिंदर कौर