ముందుకు సాగిపో..
डॉ गुंडाल विजय कुमार 'विजय'
क्षितिज पर उदित एक सहर तक, पाँवों को लेकर जाना है,
रस्म उल्फत की यह एक गुनाह में हर बार करु।
Nature ‘there’, Nurture ‘here'( HOMEMAKER)
Go Ahead and Touch the Sky
*सीखो जग में हारना, तोड़ो निज अभिमान (कुंडलिया)*
आंखें हमारी और दीदार आपका
कोयले में मैंने हीरा पहचान लिया,
पार्टी-साटी का यह युग है...
डिफाल्टर
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
संवेदन-शून्य हुआ हर इन्सां...
अब कष्ट हरो
Sarla Sarla Singh "Snigdha "
তুমি শুধু আমায় একবার ভালোবাসো
डॉ. नामवर सिंह की आलोचना के प्रपंच