Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
9 Nov 2024 · 1 min read

महका है आंगन

** नवगीत **
~~
हार सिंगार के फूलों से,
महका है आंगन।
देख लीजिए हुआ प्रफुल्लित,
खिला खिला सा मन।

खिले रात भर महके महके
सब शाखाओं पर
नित्य सुबह को महका देते
जब जाते हैं झर
सबको प्रिय लगता है इनका
कर लेना दर्शन

श्वेत पुष्प कुछ लिए लालिमा
लगते मनमोहक
भोर समय की सुंदरता के
ज्यों हो उद्घोषक
अनुभूति करवाते प्रियकर
हर्षित होते जन

औषधीय गुण भी हैं इनमें
देखो खूब भरे
स्वस्थ रखा करते जन-मन को
तन के कष्ट हरे
भक्ति भाव से पूजन में भी
होते ये अर्पण

हार सिंगार के फूलों से,
महका है आंगन।
~~~
-सुरेन्द्रपाल वैद्य

Loading...