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19 Feb 2024 · 1 min read

ग़ज़ल

आदमी से मिलके जाना, आदमी क्या चीज़ है ?
आदमी होकर ये देखा, ज़िन्दगी क्या चीज़ है ?

नफ़रतों की देहरी पै पाँव रखना ही पड़ा,
ज्यों हुए भीतर तो जाना आशिकी क्या चीज़ है ?

दूब के नाजुक पलंग पर कंकड़ों की सिलबटें,
होश में आए तो जाना बेख़ुदी क्या चीज़ है ?

वो क्या जाने ? मर गए जो बेवजह, वेवक्त यूँ,
रोज़ मरके,जीके जाना ख़ुदकुशी क्या चीज़ है ?

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