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8 Feb 2025 · 1 min read

बुला रहे हैं मुखालिफ हमें बहाने से

बुला रहे हैं मुखालिफ हमें बहाने से
“कहीं न जाएंगे हम तेरे आस्ताने से”

अंधेरा छाने लगा पुतलियों पे अब मेरी
चराग़ बुझने लगे तेरे दूर जाने से

बता रहे हैं ये महके हुए दरो दीवार
अभी अभी वो गए हैं गरीब खाने से

जो अपने बूते पे कुछ कर दिखा नहीं पाते
वो अपना नाम चलाते हैं बस घराने से

पुराना पेड़ कटाकर बढ़ा लिया आंगन
परिंदे हो गए महरूम आशियाने से

सफेद रंग लिबासों से ढक लिया खुद को
मगर ये दाग छुपेंगे नहीं छुपाने से

अब उस पे खाक हमेशा को डाल दो अरशद
जो मानता ही नहीं आपके मनाने से

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