भूली-बिसरी यादों में लम्हों की सौगात है,

भूली-बिसरी यादों में लम्हों की सौगात है,
मिलने और बिछड़ने का भी अस्ल एहसास है।
पर गुज़र बसर हुए जो कुछ चंद-चार दिन,
यारों की सोहबत में वो बहुत अज़ीम थे।
फिर भी कारवां चलेगा ताउम्र इस उम्मीद में,
कि कहीं तो मिलेंगे किसी मोड़ पर…
हम फिर से एक दिन, फिर क्या ऐ सबाँ;
उसी दिन की सोहबत में उम्मीद हमारी आबाद है।