लोग करें क्यों छल रे भाई, जब जीवन है अल्प।
माना की देशकाल, परिस्थितियाँ बदलेंगी,
रविदासाय विद् महे, काशी बासाय धी महि।
मेरी सुखनफहमी का तमाशा न बना ऐ ज़िंदगी,
*आया पतझड़ तो मत मानो, यह पेड़ समूचा चला गया (राधेश्यामी छंद
दौरे-शुकूँ फिर से आज दिल जला गया
देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत'
सद्विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
काश मैं, इन फुलों का माली होता
आज के युग में "प्रेम" और "प्यार" के बीच सूक्ष्म लेकिन गहरा अ