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8 Feb 2024 · 1 min read

मज़हब नहीं सिखता बैर

मज़हब नहीं सिखता बैर
🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀
मज़हब के प्यारे सज्जन
मानो धर्म करो अभिवंदन
शांत सद्भाव करूणा दया
धर्म सिखाता जग नमन

काया है मन मोहक माया
शुभचिंतक बन करो श्रम
विकास परिवर्तन आएगा
आर्थिक सुधार हो जाएगा

पूरी होगी सबकी अरमान
कमी ना होगा दाना पानी
भूखा रह ना जन सोयेगा
पेट भरेगा एक साथ समान

धर्म मज़हब निज अपना हो
पर द्वेष वैर का ना सपना हो
धर्म मज़हब की आड़ सरहद
पार अराजकता नहीं आधार

जन दुःख का बनो ना कारण
स्वराज्य हमारा जन्म सिद्ध है
अधिकार बचा देश जन जान
डर पीछे हटता जो देश गद्दार

निर्भय हो सामना करता जब
हृदय से मिलता दुआ बलबान
धर्मानुरागी मज़हवी भी इंसान
कठोर दृढ़ता भूल इंसानियत

सुलगाते नफ़रत उलझाते मन
सुलझा समस्या धर्म कर्म ज्ञान
एक लाख चालीस करोड़ का
आस आरमान बीर बलबान

मिलजुल मानयें निज मज़हब
बैर मिटा गले मिलें सिद्ध करें
मज़हब नहीं सिखाता आपसी
बैर बल्कि यह तो प्यार मोहब्बत
भाईचारे समृद्धि एकता का बल

🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀

तारकेशवर प्रसाद तरूण

Language: Hindi
146 Views
Books from तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
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