मतलब-ए- मोहब्बत

तालीम है आलिम की, पैगाम है खुदा का।
नसीहत है वालिद की, यह खत है एक मॉं का।।
बदनाम करो मत तुम, अपने वतन की मिट्टी ।
सुन लो जरा यारों, मुहब्बत की यह चिट्टी।।
मतलब- ए- मुहब्बत, तालीम-ए- मुहब्बत ।
पैगाम-ए-मुहब्बत, मजहब-ए- मुहब्बत।।
तालीम है आलिम की———————-।।
जरूरत है जैसे सबको, रिज्क और जमीं की।
तन के लिए कपड़ा, खाने के लिए अन्न की।।
मुफ़लिस हो या हाकिम, अफसर हो या नौकर।
जरूरत है यारों सबको, अपने घर खुशी की।।
खुशी मिलेगी कैसे, रुसवां हो दिल आपस में।
जन्नत नहीं बनती है, मुहब्बत बिना वतन में ।।
मतलब-ए- मुहब्बत—————————–।।
तहजीब तदम्मुन जब,बसती है मुहब्बत में
हर रूह को तरजीह , दी जाती है मुहब्बत में।।
इज्जत हर मजहब की,मुस्तहिबी हर खुदा की।
महफ़िल में शराफत, जब होती है मुहब्बत में ।।
जिस दिल में है ऐसी ही, मुहब्बत की इबारत।
मुफीद है वह मुहब्बत, ईमान- ए- मुहब्बत।।
मतलब-ए- मुहब्बत—————————।।
बहता लहू यह देखो,जो बह रहा है जमीं पे।
नापाक की हरकत से, कश्मीर की वादी में ।।
हालात ऐसे ही है, भारत के कुछ हिस्सों में ।
नहीं बंटने दो वतन को ,धर्मों और जाति में ।।
मत बांटो यूँ इंसान को , बहते हुए वहाँ लहू को
हिंदू और मुस्लिम में , भगवान को , चमन को ।।
मतलब-ए- मुहब्बत——————————-।।
रचनाकार एवं लेखक-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)
मोबाईल नम्बर- 9571070847