सखी का सम्मान
कृष्ण तुम आओगे ना,
तुम्हारी सखी तुमको पुकारेगी,
तो उसका आत्मसम्मान बचाओगे ना।
कृष्ण तुम आओगे ना ।।
ये दुनिया दुर्योधन दुशासन से भरी है,
हर लड़की पर उनकी आंख गिद्ध सी गड़ी है।
वो रोज अकेला महसूस करती है,
हर समय वो अंदर ही अंदर डरती है।
रोज यहां अन्याय होता है,
रोज कहीं नई द्रौपदी का चीर हरण होता है,
वो राक्षस हर दिन नया शिकार बनाते है,
वो गिद्ध उसे नोच नोच कर खा जाते है।।
तुमने तो द्वापर युग में नारी सम्मान के लिए महाभारत रच दी,
पर यहां रोज एक द्रौपदी मर जाती है,
तुमको पुकारते पुकारते थक जाती है,
अंत में उसको ही अपनी किस्मत मान लेती है,
और हमेशा के लिए मोन साध लेती है।
लेकिन अब बहुत हुआ,
कृष्ण तुम अपनी चुप्पी तोड़ो,
अपनी सखी रक्षा में कुछ तो बोलो,
अपनी किसी चोट से पट्टी खोलो,
उसके साथ ही रहे अन्याय को तुम तो रोको।
तुम एक लोते हो
जो उसकी रक्षा कर सकते हो,
उन दुराचारियों का अंत कर सकते हो।
अब कृष्ण तुमको धरती पे आना पड़ेगा,
अपनी सखी का साथ निभाना पड़ेगा ,
कृष्ण तो अब धरती पे आ जाओ ना ,
अपनी सखी का आत्मा सम्मान बचा लो ना ,
कृष्ण आओगे ना।।