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27 Apr 2024 · 1 min read

आत्मवंचना

ये क्या दिन देखने को मिल रहे हैं ?
हम अपने आप को बातों के छद्म से छल रहे हैं ,

कभी झूठे वादों के , कभी भविष्य के सपनों के ,
कभी प्रस्तुत प्रलोभन के ,कभी कल्पित अपनों के ,

कभी यथार्थ को नकारते प्रतिपादित कुतर्क से ,
कभी गूढ़ मंतव्य निर्मित काल्पनिक परिदृश्य से ,

कभी समूह मानसिकता प्रभावित चिंतन से ,
कभी आत्मवंचना करते अर्जित संज्ञान से ,

अच्छे दिन की प्रतीक्षा में हम किस दिशा में
जा रहे हैं ?
आत्मचिंतनविहीन किस माया- चक्र में
फंस रहे है ?

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