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22 Aug 2019 · 1 min read

कहाँ गए वोह लोग ?कहाँ गया वोह ज़माना ? (ग़ज़ल)

कहाँ गए वो लोग जिनकी आईने सी शख्सियत थी.
खुदा से जो उनको मिला दे ऐसी उनकी हैसियत थी .

तबियत में सादगी औ ऊँचे ख़यालात जीने का मयार ,
जिन्दादिली ,फराकदिली और रहम दिली उनमें थी .

वतन परस्ती में तो कोई उनका सानी नहीं था ,न होगा ,
लुटा सकें अपने तन-मन -धन ,ऐसी जाबाज़ी उनमें थी,

समाज के रहबर ,इंसानियत के पुजारी कहा जाये जिन्हें ,
सड़े-गले रिवाजों /रिवायतों को तोड़ने की हिम्मत इनमें थी.

बड़े-बुजुर्गों और नारी जाति के सम्मान और सुरक्षा के लिए ,
कमजोरों औ बेसहारों के हक के लिए उनकी आवाज़ उठती थी.

कर्मफल के परिणाम के अपेक्षा कर्तव्य को महत्व देने वाले ,
कर्म-योग त्याग ,दान ,धेर्य और तपस्या ही उनकी पूंजी थी .

दौलत-शोहरत का नशा न था ,न थी तब दिखावे की रीत ,
सच्चेऔर पाक ज़ज्बातों के बंधन में बंधी रिश्तों की डोर थी.

मगर अब वोह बात कहाँ ,जो पहले ज़माने में थी कभी ,
अब वोह महान माताएं कहाँ रही जो इंसानों को जन्म देती थी.

वोह जो ज़माना था ”ऐ अनु” इंसानियत का स्वर्णयुग था ,
अब जो हो रहा पतन इंसानियत का ,क्या ये कल्पना भी की थी ?

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