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25 Jan 2025 · 1 min read

नयन

मूक रहकर भी
बहुत कुछ कहते है,
सुख दुःख, हर्ष विषाद के
भाव भी सहते है।
हंसते मुस्कराते, रोते भी हैं
अंतर्मन के भाव खोलते भी हैं।
बहुत कुछ कहकर,
जाने कितना कुछ
अनकहे रह जाते हैं।
नयनों की अपनी ही भाषा है,
पर शायद हमें ही इन्हें
पढ़ने का सलीका नहीं आता,
तभी तो हम शिकायतें करते हैं
नयन मौन हो सब कुछ सहते हैं,
अपनी भाषा में
अपने भाव उकेरते हैं,
कोशिशें करते हैं।

● सुधीर श्रीवास्तव

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