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10 Nov 2024 · 1 min read

ग़ज़ल

आओ चलें चलकर उधर देखें रचें मंज़र नये
चलने लगें हैं पीठ पीछे अब इधर खंंज़र नये//1

हमसे नहीं अब तो रहा रिश्ता कोई उनका ज़रा
हमने सुना है मिल गये उनको कोई दिलबर नये//2

आता नहीं आराम है सुन गोलियाँ खाई बहुत
बचना अगर चाहूँ लगेंगें कुछ मुझे नश्तर नये//3

हिम्मत लिये ज़ज्बा लिए चलते चलो चाहे तन्हा
तैयार होंगे आपके इकदिन यहाँ लश्कर नये//4

डूबो फिरो तुम इश्क़ में पर सावधानी भी रहे
पैदा हुए हैं आजकल सपनों के कुछ तस्क़र नये//5

आँखें ख़ुली रखकर चलो विश्वास करना मत अँधा
अकसर वही छलिया मिले दिखते रहे रहबर नये//6

औक़ात क्या सब जानते तेरी यहाँ कितनी क़दर
तुमने सुनो हर रात ही बदले यहाँ बिस्तर नये//7

हमसे ज़ुदा कोई नहीं हम हैं यहाँ दिल के बड़े
नदियाँ मिलें सागर बनें आशिक़ हुए खुलकर नये//8

सोना कहो चाँदी कहो लोहा कहो चाहे मुझे
हर हाल में ‘प्रीतम’ दिखें मानव नये शायर नये//9

आर. एस. ‘प्रीतम’

सर्वाधिकार सुरक्षित ग़ज़ल
शब्दार्थ-
मंज़र- दृश्य, ख़ज़र- कटार/चाकू, दिलबर- माशूक़/प्रीतम, लश्कर- समूह, तस्कर- चोर/स्मगलर, रहबर- मार्गदर्शक

Language: Hindi
1 Like · 44 Views
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