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25 Jul 2024 · 1 min read

" यह सावन की रीत "

#विधा : दोहा छंद
#मात्रा भार : 13-11

दोहावली

थाल सजा सावन खड़ा , पावस ले जलधार ।
धरा कहे श्रृंगार कर , चलो चलें शिव द्वार ।।

झूले बाँधें हैं लता , पवन सुनाए गीत ।
नद जल सिर चढ़कर कहे , शिव से पावन प्रीत ।।

नगर द्वार सब है सजें , भोले के दर भीर ।
जोगी रमे न जोग में , काटें जन जन पीर ।।

जयकारे दे भक्तजन , करते यह आव्हान ।
“दया करो हम दीन पर , आशुतोष भगवान” ।।

पावन नद में स्नान हो , तन मन रहे पुनीत ।
काँवड़ भर जन जन चले , यह सावन की रीत ।।

पूजा में क्या चाहिए , विल्बपत्र , जलधार ।
इतने में शिव रीझते , सदा खुले हैं द्वार ।।

तन से तो उपवास हो , सहज रखें मन भाव ।
शिव का अर्चन है यही , उपजें नहीं कुभाव ।।

साधें ज्ञानेन्द्रिय सभी , ध्यान ज्योति का पुंज ।
ओम नाद गुंजार हो , खिल जाता हृद कुंज ।।

भंडारों में दान दें , बनें सहायक दीन ।
सहज , सरल , मन भाव से , रहें भक्ति में लीन ।।

महादेव तो हैं महा , काटें यम के फंद ।
सदा पूजते हम रहे , मन रहता निर्द्वन्द ।।

स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )

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