दोहा सप्तक . . . विविध
दोहा सप्तक . . . विविध
गजब हया की सुर्खियाँ, अलसाए अन्दाज।
बिखरे गेसू कह गए, बीती शब के राज ।।
पर्दा बेपर्दा किया, रोशन हुआ शबाब ।
ऐसा लगा कि खुल गई, कोई बंद किताब ।।
चिलमन से देखा उन्हें, सुर्ख हुए रुख़सार ।
दिल को छलनी कर गया, शरमीला इंकार ।।
हमसे पर्दा आपका, वाजिब नहीं हुजूर ।
बिन देखे कैसे रहे, आफताब सा नूर ।।
जितनी भी पी रात में, उतर गई सब यार ।
बन कर यकीन आ गया, ख्वाब नींद का यार ।।
घुट कर लब में रह गए, उल्फत के अल्फाज ।
रुखसारों पर लिख दिए, अश्कों ने सब राज ।।
उनसे मिलने के लिए, दिल तड़पा कई बार ।
चिलमन की मौजूदगी, मिलना था दुश्वार ।।
सुशील सरना /