हे संगिनी

हे संगिनी
अंत:करण में भामिनी,
मंथर चलो मन्दाकिनी।
रमणी सदा तू कामिनी,
चमको जरा हे दामिनी।।
सुख दायिनी गृह तारिणी,
मृग लोचनी मधु वारिणी।
कटि शेरनी मुख शोभनी,
गज गामिनी मन मोहनी ।।
दुख हारिणी हो मानिनी,
भार्या तुम्हीं हो रागिनी।
मन में रहो बन भावना,
मेरी यही है कामना।।
सहयोगिनी गृह स्वामिनी,
परिचारिका अर्धांगिनी।
कांता सुनो हे संगिनी,
सर्वस्व हो दुख भंगिनी।।
नरेंद्र सिँह, गया