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27 Jan 2024 · 1 min read

प्राण प्रतिष्ठा

जिस दौर में आत्मा मरती जा रही हो इंसान में,
यह कैसा प्राण डालने का दावा है पाषाण में ।

पाषाण में जान और इंसान आज मुर्दा है,
मानव तो मात्र आज एक मशीनी पुर्जा है ।

युगों-युगों से चलता आया रोग है यह,
राजनीति के लिए धर्म का दुरूपयोग है यह ।

तिल-तिल मर रही है रूह अब इंसान की,
विडंबना, प्रतिष्ठा पत्थर में हो रही है प्राण की ।

कैसा देश में धवंसों का निर्माण हो रहा,
जीवन यहां जब हर पल निष्प्राण हो रहा ।

जब मानव ही घट घट कर बेजान हो गया
फिर जाने कैसे जिंदा वो पाषाण हो गया ।

राजनीति करने से आओ बाज तुम,
जीवन इंसान का बचाओ आज तुम ।

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