दोहा पंचक. . . . अपराध - कानून
दोहा पंचक. . . . अपराध – कानून
करते जो कानून का, बार- बार उपहास ।
होता कारागार में, उनका सदा निवास ।।
डरते हैं कानून से, सीधे- सादे लोग ।
अपराधी समझें इसे, जैसे शाही भोग ।।
अपराधी भयहीन अब, करता अत्याचार ।
उसके मन की सोच में, विधि विधान लाचार ।।
अपराधी बेखौफ है, बाकी सब भयभीत ।
यह कैसा कानून जो, अपराधी का मीत ।।
आम आदमी के लिए, दुष्कर है कानून ।
आम जिंदगी को भला , कैसे मिले सुकून ।।
सुशील सरना / 15-4-25