शीर्षक_ जिंदगी
शीर्षक “”जिंदगी””
मरने चला में जिंदगी से परेशान होकर
अब कैसे मरे बाज़ार में कोई ज़हर नहीं
मर जाउ में किसी दरख़्त पे लटक कर
मरु कहां हमको मिला कोई शहर नहीं
मर जाये बिलाल हर आंख से छुपकर
फ़िर मरने पे ख़बर की कोई लहर नहीं
निकल जाऊं वतन छोड़ अगर अपना
हल्का बिलाल पे ऐसा कोई पहर नहीं
ज़िन्दगी जिऊं अब बगावत से अपनी
मर गया तो दुश्मनों में कोई क़हर नहीं
Aapka Apna (Writer Ch Bilal)
यह मेरी रचना बतायें आपको कैसी लगी