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8 Nov 2024 · 1 min read

कतेए पावन

कतेए दूरि,कतेए पावन!
स्नेह सँ सजल, अविरल प्रवाह!
अंग अंगनाक, माटि से महकल,
जाहिमे समाए जगह जननी सीता !!

गंगा सँ निर्मल, हिमालय सँ उच्च,
प्राकृतिक तखन धरती सँ जुड़ल!
ई वर्णन अहि, पाणिनी सँ गहि,
कतेए मधुर, शारदा स्वर सँ गुँजल!!
शारदा नमन ,तोहे माधव

धरती के आँगन, झूमि जतन-जखन,
जन्मल ओहिमे संस्कृति के राग !
सिखलक प्रेमक, बाँचल कारि,
अपनो धरामे बिखरल पराग सिता !!

दुषित सामाजिक, पंत विचार के,
जीवनक एह यथार्थ विकल!
जाहि में गहिराई, संघर्ष सँ जुड़ल,
अन्हरियामे सप्पन सँ फुलल,, जोर बंसती !!

हर धड़कन सँ जुड़ल,अपन-पराय केँ,
जीवनक भाव सँ होइ स्नेहिल संग!
स्नेह के बंधन, अटूट अर्पण,
जाहि में भेटल हर रंग प्रिये !!

आनंद सँ छलकल जीवनक गाथा,
प्रेमक अनुभूति, स्नेहक तरंग!
साधक मर्म, दर्पण साँझ सँ सुबह,
अछि ई जीवनक, रंगमंच सिये !!

कतेए दूरिक, कतेए पावन!
धार सँ निर्मल, पावन अहि सँ महान!
ओहि भाषा, ओहि संस्कृति के वंदन,
धरती के स्नेहिल छाँह ठाम सिये !!

—श्रीहर्ष—–

Language: Maithili
99 Views
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