Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
13 Oct 2024 · 10 min read

गरबा नृत्य का सांस्कृतिक अवमुल्यन :जिम्मेवार कौन?

गरबा का आधुनिक स्वरूप:- सांस्कृतिक अवमुल्यन,- जिम्मेवार कौन…? एक सवाल और जवाब
किसी देश के पर्व त्योहार, रीति-रिवाज, प्रतीक, धार्मिक आचार-विचार, सांस्कृतिक मूल्य व विश्वास उस देश की अमूल्य सम्पत्ति होती है जो कि देश के सामाजिक राजनीतिक एवं आर्थिक विकास की दिशा तय करने में अग्रणी भूमिका निभाने का कार्य करती है।
गरबा नृत्य, मुख्य रूप से गुजरात राज्य का पारम्परिक नृत्य है जो कि अब देश के विभिन्न हिस्सों में किया जाने लगा है। राजस्थान में इसे डांडिया या रास नृत्य,के नाम से भी जाना जाता है। पारंपरिक रूप से यह नवरात्रि के त्योहार के दौरान किया जाता है। गरबा नृत्य, गोलाकार संरचनाओं में किया जाता है, जो जीवन के शाश्वत चक्र और ब्रह्मांड की ब्रह्मांडीय ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है। गरबा एवं डांडिया नृत्य में इस्तेमाल की जाने वाली छड़ियां दुर्गा की तलवार का प्रतीक होती हैं.

भारत की आज़ादी के पचहत्तर वर्ष से अधिक बीत चुके हैं। इस वर्ष की दुर्गा पूजा इस हिसाब से आजाद भारत का उनासीवां शारदीय नवरात्रि महोत्सव बड़े धूमधाम से पुरे देश में मनाया जा रहा है ।
आधुनिक युग में सोशल मीडिया, फेसबुक व्हाटस एप्प आदि पर्व-त्योहारों की विशिष्टताओं एवं उनकी कुरीतियों के लिए विश्लेषणात्मक एवं आलोचनात्मक समीक्षाओं का एक प्लेटफार्म प्रदान करने का कार्य कर रहा है।
इस वर्ष चल रही शारदीय नवरात्र 2024 के दौरान व्हाटस एप्प की एक साहित्यिक ग्रुप में गरबा के आधुनिक स्वरूप: सांस्कृतिक अवमुल्यन पर घोर चिंता व्यक्त की गई जो निम्नवत है। सवाल मूल रूप में लिया गया है किसी प्रकार की इडिटिंग नहीं की गई है।
सवाल– एक व्यंग्य आलेख ,गरबा उत्सव पर ,अच्छा लगे तो कृपया अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें
**गरबा का थोथा गर्व**
नवरात्रि के आते ही जैसे शहर में महापर्व का बिगुल बज उठा हो। चारों तरफ गरबा और डांडिया की धूम है। सड़कों से लेकर गलियों तक एक ही आवाज़ गूंज रही है – “जय माता दी, डीजे वाला भैया, थोड़ा गाना लगा दो, बेबी को बेस पसंद है।” डीजे की रीमिक्स धुन, डांडिया बजाते लोग, जैसे कि शहर को एक बुखार चढ़ गया हो… गर्मी के नौ तपों से भी तेज़ बुखार! अजी, ये वही नवरात्रि है न, जो माँ दुर्गा की भक्ति, पूजा, और साधना का पर्व माना जाता था? अब देखिए, इस गरबा महोत्सव ने कैसा रूप धर लिया है – लगता है जैसे फैशन शो, डेटिंग साइट, मौज-मस्ती, और रेव पार्टी चल रही हो। महिलाएं और बच्चियां, तन पर धोती की लीर लपेटे, स्लीवलेस ब्लाउज़ और नंगी पीठ पर माँ दुर्गा की पेंटिंग चिपकाए, फैशन की दौड़ में अंधी भागती, लड़खड़ाती संस्कृति के प्लेटफार्म को रौंदती हुई चली जा रही हैं। गरबा नहीं, कोई मॉडलिंग कांटेस्ट हो गया है जी!
माँ दुर्गा की तस्वीर देख रहा हूँ, एक कोने में पड़ी सिसक रही है। आयोजक ने दो फूल-मालाएं प्रायोजकों के हाथों चढ़वाकर, दो अगरबत्तियां लगाकर डोनेशन की मोटी रकम का जुगाड़ कर लिया है। माँ इंतज़ार कर रही है इस कैद से छूट जाने का… 9 दिन का कारावास! किधर देवी माँ की भक्ति और किधर वो पुरानी परंपराएँ?
पहले जहाँ माँ दुर्गा की स्तुति के साथ आरती होती थी, वहीं अब डीजे वाले बाबू की धुनों पर लोग और लुगाइयाँ अपनी कमर मटका रहे हैं। रातभर डीजे के भोंपू मोहल्ले की नींद हराम करने को आतुर हैं। जब हर तीज-त्योहार को बाज़ार ने गिरफ्त में ले लिया, तो भला गरबा कहाँ से बचेगा रे! लड़कियाँ अपने गरबा ड्रेस की चमक और चूड़ियों की खनक से इंस्टाग्राम की खिड़कियों पर खड़ी बुला रही हैं, “आओ, गरबा खेलें।” और लड़के अपनी नई-नई स्टाइलिश मूंछों के साथ आज की रात का इंतज़ाम कर रहे हैं… कल की कल देखेंगे… बस अपनी सेटिंग करने में लगे हैं।
कौन करेगा ऐसे गरबा पर गर्व? एक सार्वजनिक रोमांस का खेल देवी माँ की आड़ में! लड़के-लड़कियां एक-दूसरे को देखकर गरबा करते हुए आँखों ही आँखों में इश्क़ फरमा रहे हैं। बीच-बीच में किसी कोने में खड़े होकर मोबाइल पर ‘सेल्फी विद गरबा क्वीन’ का सीन सेट कर रहे हैं। सब कुछ बदल गया है; होली के रंग फीके पड़ गए हैं, दीवाली के दीयों तले अंधेरा व्याप्त है, और नवरात्रि के गरबा में प्रेम के पींगे चढ़ाए लोग बौराए हुए हैं।
हमारे तीज-त्योहार गली-मोहल्ले, आस-पड़ोस, घर-बार में कम, और फेसबुक-इंस्टा पर धूमधाम से मनाए जा रहे हैं। प्रेम, श्रृंगार और भक्ति रीतिकाल का सौंदर्य… जैसे प्रेम की नदियाँ बह रही हों। स्टेटस पर सावन की बौछारें सबको भिगो रही हैं, प्रेम के गीत गूंज रहे हैं, और श्रृंगार का भोंडा प्रदर्शन हो रहा है। पर असल ज़िंदगी में क्या हो रहा है? तनिक ठहर कर देखो ना… गर्मी से भरी रसोई में पसीने-पसीने हो रही महिलाएं, बिजली की कटौती से परेशान घर, और शहर की सड़कों पर पानी का सैलाब। पर ये सब तो कौन देखता है? सोशल मीडिया की दुनिया में तो सब कुछ अद्भुत और सुंदर है! दिल बहलाने को ग़ालिब ये ख़याल अच्छा है।
यह गरबा का मौसम है… भूल जाइए सब कुछ… तनिक रोमांटिक हो जाइए, असलियत से आँखें मूँद लीजिए। कुछ नजर नहीं आएगा… सड़कों पर पानी का सैलाब बह रहा है, लोग जाम में फंसे हुए हैं, और बच्चों की बेसमेंट में डूबने से मौत हो रही है। ये आवाजें बेसुरी हैं… ताल पर नहीं हैं… धुन बदलो… बाज़ार की धुन पर थिरको। गरबा के ठुमके लगाते हुए नाचो… ‘चिकनी चमेली’ पर! नाचो उनके सर पर जिनके सर के ऊपर की छत से पानी टपक रहा है।
बाढ़ और बारिश की चिंता छोड़िए… चिंता चिता के समान है! पुल गिर रहे हैं… गिरने दो, पहाड़ दरक रहे हैं… दरकने दो। आग पड़ोस में लगी है… लगने दो। हमारे दरवाजे फायर-प्रूफ हैं! हाँ, एनओसी ले ली है… 5000 रु खर्च करके… देखो, हमारे दरवाजे पर आग लग ही नहीं सकती… हम दिखा देंगे एनओसी आग को। पड़ोसी को बुझाने दो आग, हम तो चले गरबा खेलने… ‘ढोलिडा… ढोल बाजे।‘ सभी के लिए गरबा कुछ न कुछ लेकर आया है। नेता के लिए चुनावी फसल उगाने को वोट-रूपी बीज मिलेंगे, संस्थाएं चंदा वसूली करेंगी, दिशाहीन भटकते नौजवानों को दिशा मिलेगी, और आधुनिकता की अंधी दौड़ में पागल नारी शक्ति को अपना शक्ति प्रदर्शन दिखाने का मौका मिलेगा। सबकी झोली में कुछ न कुछ देकर जाएगा यह गरबा। कुछ स्वछंद लड़कियों की झोली में भी एक अनचाहा गर्भ… एबॉर्शन क्लिनिक के लिए ग्राहकों की लंबी कतार!
चलो भाई, गरबा करो, डांडिया खेलो, पर कभी-कभी नजर उठाकर देख भी लिया करो। कहीं आसमान से बादल तो नहीं फट रहा, या सड़कों पर पानी का सैलाब तो नहीं बह रहा! अगर कुछ नजर बची हो तो… नहीं तो सब रतौंधी के मारे, दिन के उजाले में कुछ नजर नहीं आता। रातें शायद सिर्फ गुनाह करने के लिए बनी हैं।
**रचनाकार – डॉ. मुकेश असीमित**
साभार _व्हाटस एप्प वाल से।
मेरा जवाब :-
इस परिदृश्य की पटकथा तो बहुत पहले आजादी के बाद ही लिख दी गई थी लेकिन हम तो गधे है समझेंगे कैसे!
हम कब इस बात को समझेंगे कि यदि “मस्जिद” के साथ मदरसा संचालित है,”चर्च” के साथ कान्वेंट स्कूल तो मंदिरों के अंदर भी गुरुकुल चलने चाहिए अनुच्छेद 30 को हटना चाहिये। वक़्त आ गया है कि “अनुच्छेद 30″ को हटाया जाए ताकि भारत के विद्यालयों में गीता, रामायण और सनातन धर्म संस्कृति” की शिक्षा भी दी जाए।
धर्म और संस्कृति आधारित विश्लेषण सुक्ष्मता से कराते हुए आधुनिक पीढ़ी को अवगत कराया जाए एवं इनके मानस पटल को
शंकामुक्त करने का भरसक प्रयास किया जाय।
आप सभी भारतीय संविधान के अनुच्छेद 30 से अवगत तो होंगे ही, यदि नही अवगत हैं तो जान लीजिए।
संक्षिप्त में थोड़ा परिचय दे रहा हूँ।
संविधान का अनुच्छेद 30 अल्पसंख्यकों को शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और उनका प्रशासन करने का अधिकार
(1)सभी अल्पसंख्यकों को, चाहे वे धर्म या भाषा पर आधारित हों, अपनी पसंद की शैक्षणिक संस्थाएं स्थापित करने और उनका प्रशासन करने का अधिकार होगा।

(1ए)-खंड (1) में निर्दिष्ट अल्पसंख्यक द्वारा स्थापित और प्रशासित किसी शैक्षणिक संस्था की किसी संपत्ति के अनिवार्य अर्जन के लिए कोई कानून बनाते समय राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि ऐसी संपत्ति के अर्जन के लिए ऐसे कानून द्वारा नियत या उसके अधीन अवधारित राशि ऐसी हो जो उस खंड के अधीन गारंटीकृत अधिकार को प्रतिबंधित या निरस्त न करे।

(2)राज्य, शैक्षिक संस्थाओं को सहायता प्रदान करते समय, किसी भी शैक्षिक संस्था के विरुद्ध इस आधार पर भेदभाव नहीं करेगा कि वह किसी अल्पसंख्यक के प्रबंधन के अधीन है, चाहे वह धर्म या भाषा पर आधारित हो।
असल में सेकुलर शब्द ही इस देश का सबसे बड़ा सांस्कृतिक घोटाला है जो कि हिन्दुओं की कार्य संस्कृति एवं परम्परा को नष्ट करने के उद्देश्य से उस समय की तत्कालीन सरकार द्वारा गढ़ा गया शब्द था और सनातन संस्कृति के सहिष्णु सिद्धांत होने के कारण सिर्फ उसी पर थोपी गयी अवधारणा थी।
बाकी के सभी धर्मों के अनुयायियों को अपने धर्म की बारिकियों को समझाने, अपने धर्म के प्रति वफादार रहने , कट्टरता और धर्म परिवर्तन कराने की खुली छूट दी गई, उन्हें सेकुलर शब्द या सेकुलरिज्म से कोई लेना-देना नहीं था। यदि सेकुलर शब्द से मतलब रहता तो शहरों,गांवों में संचालित होने वाले हजारों मदरसाओं और विभिन्न शहरों में संचालित होने वाले मिशनरीज स्कूलों/कालेजों की भरमार आज नहीं होती और इसकी जगह सभी धर्मों के लिए एक समान शिक्षा पद्धति एवं नैतिक मूल्यों का विकास करने वाले संस्थान खोले जाते।
सामान शिक्षा प्रणाली के तहत भारतीय शिक्षा बोर्ड का गठन 1948 में ही हो जानी चाहिए थी, लेकिन आपलोगों तो मालुम ही होगा कि भारत के पहले शिक्षा मंत्री अरब में जन्मे प्रकांड विद्वान थे जो कि आजादी के पंद्रह साल बाद तक शिक्षा मंत्री रहे तो वह किस धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए अपना विजन सोच रहे होंगे।
उस समय के तत्कालीन सरकारों ने इस्लामीकरण को बढ़ावा देने के लिए लियाकत अली के साथ दिखावटी समझौता किया कि भारत मुसलमानो की रक्षा करेगा और पाकिस्तान हिंदुओं की रक्षा करेगा( अल्पसंख्यक वर्गीकृत करके) , और जैसा कि आपलोगों को तो मालूम ही होगा कि पाकिस्तान में कोई अल्पसंख्यक आयोग गठित ही नहीं हुआ जैसे कि पाकिस्तान में कोई हिंदू रह ही नहीं रहा हो,। वहाँ तो अल्पसंख्यक आयोग बनाने की आवश्यकता ही महसूस नहीं हुई, और हिन्दुस्तान में क्योंकि गांधी, नेहरू ने यहाँ मुसलमानो को रोक लिया था (जो वस्तुतः पाकिस्तान जाते) तो उनको अल्पसंख्यक वर्गीकृत करने के लिये बाकी विदेशी रिलीजनों के अनुयायियों को भी अल्पसंख्यक वर्गीकृत कर दिया और इस प्रकार मूल रूप से सनातन धर्म संस्कृति को छोड़कर अन्य धर्मों के अनुयायियों को ही सांस्कृतिक दृष्टिकोण से प्रथम दर्जे का नागरिक बना दिया गया।
अब बताइए कि देश के सबसे बड़े सांस्कृतिक घोटाले पर आज तक किसी का ध्यान गया है क्या…?
(हालांकि भारी विरोध के बाद पाकिस्तान की कैबिनेट ने 5 मई, 2020 को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) की स्थापना की मंजूरी दी और अल्पसंख्यक आयोग का गठन 13 मई, 2020 को हुआ है, लेकिन फिर भी अल्पसंख्यकों के धर्मपरिवर्तन, अल्पसंख्यक महिलाओं के अपहरण, बलात्कार एवं जबरन निकाह की घटना में कोई कमी नहीं आई है और अल्पसंख्यकों की आबादी में निरंतर ह्रास जारी है।)
भारत सरकार ने वर्ष 2014 के बाद से ही इस इस कुव्यवस्था को जान लिया और इसे दूर करने के लिए प्रयासरत है पिछले कुछ वर्षों पहले भारतीय शिक्षा बोर्ड बनाया गया है जिसे फलने-फूलने और अपनी संस्कृति की छाप छोड़ते हुए उसी अनुसार पौध तैयार करने में अभी वक्त लगेगा। परिणाम आने में कुछ समय तो लग ही जाएगा।
अतः तब तक के लिए हम सब सिर्फ भगवान से प्रार्थना कर सकते हैं कि हे ईश्वर हमारे भटके हुए नौजवानों को सुबुद्धि प्रदान करने कृपा करें और इसी तरह की रचना,आलेख, काव्य और सांस्कृतिक विश्लेषण करके समाज और आधुनिक पीढ़ी को चारित्रिक पतन से बचा सकते हैं और अपने कर्तव्यों के प्रति उन्हें जागरूक कर सकते हैं।

निष्कर्ष :देश में फिर से एक बार सांस्कृतिक पुनर्जागरण की आवश्यकता है और इस कदम में सभी प्रबुद्ध जनों को आगे आना होगा ।
जब इस देश की आदरणीया लोकसभा सांसद सुश्री कंगना रनौत ने यह बयान दिया था कि देश में असली आज़ादी 2014 में मिली थी तो देश के सारे के सारे बुद्धिजीवी गच्चा खा गए और किसी को भी यह समझ में नहीं आया कि वो बोल क्या रही है..?
अरे वो तो जिस आजादी की बात कर रही थी वह क्या अंग्रेजों से आजादी थी या कुछ और…?
यह सांस्कृतिक आजादी थी जिसे पाने की
हमने कभी जरुरत ही नहीं समझी। वर्ष 2014 से पहले कब हमने अपने देश की मूल सांस्कृतिक समस्याओं को समझने का प्रयास किया क्या..?
अपने जेहन में यह प्रश्न कीजिये एवं फिर कंगना रनौत की देशभक्ति पर प्रश्नचिन्ह लगाइयेगा।
1)आज़ादी के इतने दिनों बाद भी अभी तक समान शिक्षा प्रणाली पूरे देश में लागू क्यों नहीं हो सका..?
2)आज़ादी के इतने दिनों बाद भी क्यों अभी तक समान नागरिक संहिता पर बहस ही चल रही है। इसे कब लागू किया जाएगा..?
3)आज़ादी के इतने दिनों बाद भी क्यों हम सभी अभी तक जात-पात में उलझे हुए हैं और लोग धर्म परिवर्तित करके भी आरक्षण का लाभ ले रहे हैं..?
4)आज़ादी के इतने दिनों बाद भी क्यों अभी तक हिन्दुस्तान में सनातन बोर्ड की स्थापना नहीं हो सकी लेकिन वक्फ बोर्ड के नाम पर देश की 9 लाख एकड़ जमीन हड़प ली गई…?
5)चर्च, मस्जिद पर सरकार का नियंत्रण नहीं तो हिंदू मंदिरों पर क्यों?
6)कश्मीर में संविधान के अस्थायी उपबंध अनुच्छेद 370 एवं 35 ए हटाने का काम आजादी के तत्क्षण बाद हो जाने चाहिए थी जिसे पूरा करने में बहत्तर वर्ष क्यों लग गए…?
6)आज़ादी के इतने दिनों बाद भी अभी तक मंदिरों में दान की गई सम्पत्तियों को सरकार हड़प ले रही है, और अन्य कार्य एवं अन्य धर्मों के विकास में लगा दे रही है।

इन सभी अनुत्तरित प्रश्न आप सभी के मूल प्रश्न होने चाहिए थी लेकिन इस तरफ तो ध्यान ही नहीं गया।
खाली जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा इन प्रश्नों को
उठाने का साहस कर रहा है तो उसे इस देश के साजिशकर्ताओं द्वारा आरएसएस को ही
सरेआम गाली देने का काम किया जा रहा है।
आखिरकार हमें भी तो संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार मिला हुआ है तो अपने धर्म संस्कृति की बातों को उठाने में संकोच क्यों…?

रचनाकार एवं संकलनकर्ता
मनोज कुमार कर्ण (कटिहार)
बिहार

3 Likes · 727 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from मनोज कर्ण
View all

You may also like these posts

- कुछ ऐसा कर कमाल के तेरा हो जाऊ -
- कुछ ऐसा कर कमाल के तेरा हो जाऊ -
bharat gehlot
इबादत
इबादत
Roopali Sharma
तुम हो एक आवाज़
तुम हो एक आवाज़
Atul "Krishn"
लघु कथा:सुकून
लघु कथा:सुकून
Harminder Kaur
जाओ तेइस अब है, आना चौबिस को।
जाओ तेइस अब है, आना चौबिस को।
सत्य कुमार प्रेमी
*सत्य राह मानव की सेवा*
*सत्य राह मानव की सेवा*
Rambali Mishra
औरत की दिलकश सी अदा होती है,
औरत की दिलकश सी अदा होती है,
Ajit Kumar "Karn"
जो सोचूँ मेरा अल्लाह वो ही पूरा कर देता है.......
जो सोचूँ मेरा अल्लाह वो ही पूरा कर देता है.......
shabina. Naaz
ये गजब की दुनिया है जीते जी आगे बढने नही देते और मरने के बाद
ये गजब की दुनिया है जीते जी आगे बढने नही देते और मरने के बाद
Rj Anand Prajapati
मेरी फूट गई तकदीर
मेरी फूट गई तकदीर
Baldev Chauhan
(((((((((((((तुम्हारी गजल))))))
(((((((((((((तुम्हारी गजल))))))
Rituraj shivem verma
प्रेरणा
प्रेरणा
संतोष सोनी 'तोषी'
कैसे कहे
कैसे कहे
Dr. Mahesh Kumawat
बेटी की पुकार
बेटी की पुकार
लक्ष्मी सिंह
यादें
यादें
Raj kumar
यक्षिणी- 23
यक्षिणी- 23
Dr MusafiR BaithA
Baat faqat itni si hai ki...
Baat faqat itni si hai ki...
HEBA
11. O My India
11. O My India
Santosh Khanna (world record holder)
हरे हैं ज़ख़्म सारे सब्र थोड़ा और कर ले दिल
हरे हैं ज़ख़्म सारे सब्र थोड़ा और कर ले दिल
Meenakshi Masoom
हम सहिष्णुता के आराधक (गीत)
हम सहिष्णुता के आराधक (गीत)
Ravi Prakash
!........!
!........!
शेखर सिंह
गर्मी उमस की
गर्मी उमस की
AJAY AMITABH SUMAN
सोना  ही रहना  उचित नहीं, आओ  हम कुंदन  में ढलें।
सोना ही रहना उचित नहीं, आओ हम कुंदन में ढलें।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
ज़िद..
ज़िद..
हिमांशु Kulshrestha
॥ जीवन यात्रा मे आप किस गति से चल रहे है इसका अपना  महत्व  ह
॥ जीवन यात्रा मे आप किस गति से चल रहे है इसका अपना महत्व ह
Satya Prakash Sharma
"अल्फ़ाज़ "
Dr. Kishan tandon kranti
हम सब कहीं न कहीं से गुज़र रहे हैं—कभी किसी रेलवे स्टेशन से,
हम सब कहीं न कहीं से गुज़र रहे हैं—कभी किसी रेलवे स्टेशन से,
पूर्वार्थ देव
मुकम्मल क्यूँ बने रहते हो,थोड़ी सी कमी रखो
मुकम्मल क्यूँ बने रहते हो,थोड़ी सी कमी रखो
Shweta Soni
आदिशक्ति का महापर्व नौ दिवसीय चैत्र नवरात्रि की शुरुआत 30 मा
आदिशक्ति का महापर्व नौ दिवसीय चैत्र नवरात्रि की शुरुआत 30 मा
Shashi kala vyas
चिंतन तो बहुत किया किसी खास वज़ह को सोच कर
चिंतन तो बहुत किया किसी खास वज़ह को सोच कर
ruchi sharma
Loading...