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16 Feb 2024 · 1 min read

तुम हो एक आवाज़

तुम हो एक आवाज़
कोई अक्स नहीं
रहती हो बस गूंजती

वो सुगंध हो
जो है हर कैद से परे
बस एक सांस भर में
मेरे अंतर तक हो समाती

छलिया भी हो
छलती हो जब साथ सांस के
बाहर निकल हो जाती

मुलायम हो
जब बारिश की फुहार सी कोमल
कपोल को चूमती हो

कभी गरम उड़ती रेत सी हो लगती
कभी पेड़ की छावं सी शीतल
जो रूठती हो कभी तो
मरुस्थल सी तुम हो जाती

जैसी भी हो “ज़िन्दगी
तुम सुगंध हो मेरी
हर भी कैद से परे

अतुल “कृष्ण”

Language: Hindi
90 Views
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