पहले की औरतों के भी ख़्वाब कई सजते थे,
मेरा नसीब मुझे जब भी आज़मायेगा,
तुम्हारे दिल में इक आशियाना खरीदा है,
अपनी अपनी बहन के घर भी आया जाया करो क्योंकि माता-पिता के बाद
“मैं फ़िर से फ़ौजी कहलाऊँगा”
बोला नदिया से उदधि, देखो मेरी शान (कुंडलिया)*
जुर्म तुमने किया दोषी मैं हो गया।
दुनियां में मेरे सामने क्या क्या बदल गया।
ज़रूर है तैयारी ज़रूरी, मगर हौसले का होना भी ज़रूरी
" बिछड़े हुए प्यार की कहानी"