कभी पास बैठो तो सुनावो दिल का हाल
परिंदों का भी आशियां ले लिया...
ग़ज़ल सगीर
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
दिवाली है दीपों का पर्व ,
गीत- जहाँ मुश्क़िल वहाँ हल है...
चांद सूरज भी अपने उजालों पर ख़ूब इतराते हैं,
आनेवाला अगला पल कौन सा ग़म दे जाए...
भ्रम रिश्तों को बिखेरता है
वो आपको हमेशा अंधेरे में रखता है।
भगवद्गीता ने बदल दी ज़िंदगी.
उर-ऑंगन के चॉंद तुम्हीं हो।
निकले क्या पता,श्रीफल बहु दामाद
मुझे इस दुनिया ने सिखाया अदाबत करना।
अब कौन रोज़ रोज़ ख़ुदा ढूंढे
उठ रहा मन में समन्दर क्यूँ छल रहा सारा जहाँ,
नन्हा घुघुट (एक पहाड़ी पंछी)
"ऊंट पे टांग" रख के नाच लीजिए। बस "ऊट-पटांग" मत लिखिए। ख़ुदा