Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
9 May 2024 · 1 min read

बुद्धि

बुद्धि बड़ी विचित्र होती है ।
किसी में कम होती है तो
किसी में अधिक होती है।
स्मरण शक्ति का स्रोत यही है।
यही अतीत बतलाती है।
समस्या पैदा करने पर यह
चालाकी बन जाती है।
जब कोई समस्या हल करती है
चतुर सुजान कहलाती है।
कभी धर्म में लगकर यह
दया रूप दिखलाती है।
तो कभी अधर्म में पड़कर यह
निर्दय भी बन जाती है।
रामायण की मर्यादा यही है
त्याग और प्रेम सिखाती है।
महाभारत की शकुनी बनकर
यही कुटुंब युद्ध कराती है।
सत्ता धन का दुरुपयोग करने पर
दुर्योधन कहलाती है।
तो ज्ञान का अर्जन करने वाला
अर्जुन भी बन जाती है।

-विष्णु प्रसाद ‘पाँचोटिया’

Language: Hindi
1 Like · 106 Views

You may also like these posts

गरीबी एक रोग
गरीबी एक रोग
Sunny kumar kabira
Maybe this is me right now
Maybe this is me right now
Chaahat
मुॅंह अपना इतना खोलिये
मुॅंह अपना इतना खोलिये
Paras Nath Jha
कैसे पचती पेट में, मिली मुफ्त की दाल।.
कैसे पचती पेट में, मिली मुफ्त की दाल।.
RAMESH SHARMA
रिश्तों का कच्चापन
रिश्तों का कच्चापन
पूर्वार्थ
देवी महात्म्य प्रथम अंक
देवी महात्म्य प्रथम अंक
मधुसूदन गौतम
प्रदूषण
प्रदूषण
Pushpa Tiwari
कुदरत के रंग.....एक सच
कुदरत के रंग.....एक सच
Neeraj Agarwal
अकेलापन
अकेलापन
लक्ष्मी सिंह
सूरज क्यों चमकता है ?
सूरज क्यों चमकता है ?
Nitesh Shah
औरों के लिए सोचना अब छोड़ दिया हैं ,
औरों के लिए सोचना अब छोड़ दिया हैं ,
rubichetanshukla 781
हो चाहे कठिन से भी कठिन काम,
हो चाहे कठिन से भी कठिन काम,
Ajit Kumar "Karn"
दोहा समीक्षा- राजीव नामदेव राना लिधौरी
दोहा समीक्षा- राजीव नामदेव राना लिधौरी
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
*ईश्वर की रचना है धरती, आकाश उसी की काया है (राधेश्यामी छंद)
*ईश्वर की रचना है धरती, आकाश उसी की काया है (राधेश्यामी छंद)
Ravi Prakash
पिताजी हमारे
पिताजी हमारे
हिमांशु बडोनी (दयानिधि)
नव वर्ष मंगलमय हो
नव वर्ष मंगलमय हो
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
7) तुम्हारी रातों का जुगनू बनूँगी...
7) तुम्हारी रातों का जुगनू बनूँगी...
नेहा शर्मा 'नेह'
"बेहतर यही"
Dr. Kishan tandon kranti
सखि री !
सखि री !
Rambali Mishra
चाँद और अंतरिक्ष यात्री!
चाँद और अंतरिक्ष यात्री!
Pradeep Shoree
शख्शियत
शख्शियत
आर एस आघात
आशा
आशा
Mamta Rani
हम मुस्कुराते हैं...
हम मुस्कुराते हैं...
हिमांशु Kulshrestha
जो भुगत कर भी थोथी अकड़ से नहीं उबर पाते, उन्हें ऊपर वाला भी
जो भुगत कर भी थोथी अकड़ से नहीं उबर पाते, उन्हें ऊपर वाला भी
*प्रणय*
कैसा कोलाहल यह जारी है....?
कैसा कोलाहल यह जारी है....?
पाण्डेय चिदानन्द "चिद्रूप"
23/44.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/44.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
हां ख़ामोश तो हूं लेकिन.........
हां ख़ामोश तो हूं लेकिन.........
Priya Maithil
वाक़िफ़ नहीं है कोई
वाक़िफ़ नहीं है कोई
Dr fauzia Naseem shad
वर्तमान
वर्तमान
Neha
कुछ देर तो ठहरो :-
कुछ देर तो ठहरो :-
PRATIK JANGID
Loading...