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4 May 2024 · 2 min read

स्नेह का नाता

उस संग स्नेह का नाता जोड़ा
जिसे स्नेह का भान नहीं

मिलकर उसे भूल गए
वैभव सारा मोहक प्रति छाया
अपलक साकार हुए तुम मेरे
जन्मों का खोया धन पाया
पुष्प खिला सुरभित उपवन
मधुकर का कुछ ज्ञान नहीं
उस संग स्नेह का नाता जोड़ा
जिसे स्नेह का भान नहीं

सूरज उगा संध्या से मिलने
भोर हुई रजनी की साध
मानस मोती चुन-चुन हमने
अंबर का है भाल सजाया
उस नदिया में नाव उतारी
जिस, राह सागर की पता नहीं
उस संग स्नेह का नाता जोड़ा
जिसे स्नेह का भान नहीं।

यौवन उपवन मधुमास बना
तूफानों से पुष्पित विकसित
जीवन पल पल ऋतुराज हुआ
मन निर्झर फिर हुआ समर्पित
तृप्त पिपासा की आस उसी से
जिसे, मरु ताप का ज्ञान नहीं
उस संग स्नेह का नाता जोड़ा
जिसे स्नेह का भान नहीं ।

अज्ञात तुम्हारे खातिर हमने
अंतिम श्वास आहूत किया
पूर्ण आहुति किया निज सर्वस्व
समिधा बन जीवन होम किया
जलधारा क्यूंकर बनती नदिया
जिसे तटों का साथ नहीं
उस संग स्नेह का नाता जोड़ा
जिसे स्नेह का भान नहीं ।

अगणित तारो तुम संग मैंने
भोर तलक है साथ निभाया
कटा रात रजनी संग मैं भी
तम से फिर उजाला हो पाया
वह गान क्या मरहम देगा मुझको
पीड़ा जिसका प्राण नहीं
उस संग स्नेह का नाता जोड़ा
जिसे स्नेह का भान नहीं ।

जग में पीड़ा तुमने बांटी
सहेजा मैंने जीवन धन पाया
तुमने सोचा रुदन करूंगा
मैं सस्वर जीवन गाया
उन पंखों का क्या करता प्रियतम
तुम तक जिनकी परवाज़ नहीं
उस संग स्नेह का नाता जोड़ा
जिसे स्नेह का भान नहीं ।

तुम सौंदर्य की पराकाष्ठा
चाहु दिशी आलोक तुम्हारा है
तुमसे लौ चुराकर चमकें
नक्षत्रों के मंडल सारे
तुमने सांसों के धागे खींचे
व्याकुल होते मारे-मारे
सुंदर,अति सुंदर,तुम सुंदरतम
क्यों मुझको पहचान नहीं
उसे संग स्नेह का नाता जोड़ा
जिसे स्नेह का भान नहीं ।

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Books from डॉ राजेंद्र सिंह स्वच्छंद
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