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14 Apr 2025 · 1 min read

#ग़ज़ल

#ग़ज़ल
■ बो देता था मैं…!!
【प्रणय प्रभात】

● पल में अश्क़ों से पलक
अक़्सर भिगो देता था मैं।
एक मामूली ख़ुशी पे
ख़ुश भी हो देता था मैं।।

● बचपने में जानता था
कुछ भी पाने का हुनर।
कोई हसरत छेड़ती थी
सिर्फ़ रो देता था मैं।।

● इस हथेली को भी बस
उस पीठ की पहचान थी।
जिस पे थप्पी मार कर
हौले से खो देता था मैं।।

● उम्र जब अल्हड़ थी तब
उसके तक़ाज़े थे अलग।
एक दिल दिन भर में बीसों
बार खो देता था मैं।।

● आज ख़ुद अपने लिखे
अक्षर समझ आते नहीं।
दौर था काग़ज़ पे जब
मोती से बो देता था मैं।।

● दौर वो अब से जुदा था
दिल में इक सैलाब था।
तब पराए ज़ख़्म तक
अश्क़ों से धो देता था मैं।।

😉😉😉😉😉😉😉😉😉

संपादक
न्यूज़ एंड व्यूज

1 Like · 18 Views
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