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18 Feb 2024 · 1 min read

नया इतिहास

सृष्टि के भीतर जब सन्नाटा घिरता है,
भावों का ज्वार धीमे से उतरता है।
मानव मस्तिष्क मन का दिक् दर्शक बन,
आत्म प्रलय का स्वयं प्रणेता बनता है।
उस आत्मयज्ञ में निज सपनों की बलि दे,
हरा भरा चंदन वन समिधा बनता है।
चुप चुप आहें भर अपना दर्द छिपा कर,
मंत्रों का एक अनूठा जप करता है।
लुटा- पिटा सा मनु अपनी आकुलता से,
सुधि बिसरा खुद चिंता मे रमा करता है।
अहं का हिमखंड श्रद्धा की ऊष्मा से,
पिघल पिघल कर निर्मल सलिल बनता है।
सृष्टि के नवीन सृजन में प्यार हमेशा,
युग का नया इतिहास रचा करता है।

—प्रतिभा आर्य
चेतन एनक्लेव,
अलवर(राजस्थान)

Language: Hindi
5 Likes · 4 Comments · 452 Views
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